Devotional Hyms - Vishnu
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।।श्रीः।। |
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यस्यैकांशादित्थमशेषं जगदेत |
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सर्वज्ञो यो यश्च हि सर्वः सकलो यो |
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यस्मादन्यन्नास्त्यपि नैवं परमार्थं |
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आचार्येभ्यो लब्धसुसूक्ष्माच्युततत्त्वा |
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प्राणानायम्योमिति चित्तं हृदि रुध्वा |
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यं ब्रह्माख्यं देवमनन्यं परिपूर्णं |
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मात्रातीतं स्वात्मविकासात्मविबोधं |
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यद्यद्वेद्यं वस्तुसतत्त्वं विषयाख्यं |
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यद्यद्वेद्यं तत्तदहं नेति विहाय |
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हित्वाहित्वा दृश्यमशेषं सविकल्पं |
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सर्वत्रास्ते सर्वशरीरी न च सर्वः |
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सर्वं दृष्ट्वा स्वात्मनि युक्त्या जगदेत |
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सर्वत्रैकः पश्यति जिघ्रत्यथ भुङ्क्ते |
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पश्यञ्श्रृण्वन्नत्र विजानन्रसयन्सं |
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जाग्रद्दृष्ट्वा स्थूलपदार्थानथ मायां |
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पश्यञ्शुद्धोऽप्यक्षर एको गुणभेदो |
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ब्रह्मा विष्णू रूद्रहुताशौ रविचन्द्रा |
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सत्यं ज्ञानं शुद्धमनन्तं व्यतिरिक्तं |
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कोशानेतान्पञ्च रसादीनतिहाय |
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येनाविष्टो यस्य च शक्त्या यदधीनः |
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सृष्ट्वा सर्वं स्वात्मतयैवेत्थमतर्क्यं |
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वेदान्तैश्चाध्यात्मिकशास्त्रैश्च पुराणैः |
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श्रद्धाभक्तिध्यानशमाद्यैर्यतमानै |
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यस्यातर्क्यं स्वात्मविभूतेः परमार्थं |
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दृष्ट्वा गीतास्वक्षरतत्त्वं विधिनाजं |
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क्षेत्रज्ञत्वं प्राप्य विभुः पञ्चमुखैर्यो |
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युक्त्यालोड्य व्यासवचांस्यत्र हि लभ्यः |
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एकीकृत्यानेकशरीरस्थमिमं ज्ञं |
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द्वन्द्वैकत्वं यञ्च मधुब्राह्मणवाक्यैः |
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योऽयं देहे चेष्टयितान्तःकरणस्थः |
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विज्ञानांशो यस्य सतः शक्त्यधिरूढो |
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कोऽयं देहे देव इतीत्थं सुविचार्य |
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को ह्येवान्यादात्मनि न स्यादयमेष |
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प्राणो वाहं वाक्छ्रवणादीनि मनो वा |
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नाहं प्राणो नैव शरीरं न मनोऽहं |
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सत्तामात्रं केवलविज्ञानमजं स |
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मूर्तामूर्ते पूर्वमहोह्याथ समाधौ |
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ओत प्रोतं यत्र च सर्वं गगनान्तं |
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तावत्सर्वं सत्यमिवाभाति यदेत |
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रागामुक्तं लोहयुतं हेम यथाग्नौ |
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यं विज्ञानज्योतिषमाद्यं सुविभान्तं |
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पायाद्भक्तं स्वात्मनि सन्तं पुरुषं यो |