Preliminary Texts
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।।श्रीः।। |
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रज्ज्वज्ञानाद्भाति रज्जौ यथाहिः |
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आभातीदं विश्वमात्मन्यसत्यं |
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नाहं जातो न प्रवृद्धो न नष्टो |
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मत्तो नान्यत्किंचिदत्रास्ति विश्वं |