Preliminary Texts
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।।श्रीः।। |
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यस्य प्रसादादहमेव विष्णु |
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तापत्रयार्कसंतप्तः कश्चिदुद्विग्नमानसः। |
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अनायासेन येनास्मान्मुच्येय भवबन्धनात्। |
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साध्वी ते वचनव्यक्तिः प्रतिभाति वदामि ते। |
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तत्त्वमस्यादिवाक्योत्थं यज्जीवपरमात्मनोः। |
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को जीवः कः परश्चात्मा तादात्म्यं वा कथं तयोः। |
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अत्र ब्रूमः समाधानं कोऽन्यो जीवस्त्वमेव हि। |
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पदार्थमेव जानामि नाद्यापि भगवन्स्फुटम्। |
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सत्यमाह भवानत्र विगानं नैव विद्यते। |
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अन्तःकरणतद्वृत्तिसाक्षी चैतन्यविग्रहः। |
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सत्यानन्दस्वरूपं धीसाक्षिणं ज्ञानविग्रहम्। |
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रूपादिमान्यतः पिण्डस्ततो नात्मा घटादिवत्। |
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अनात्मा यदि पिण्डोऽयमुक्तहेतुबलान्मतः। |
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घटद्रष्टा घटाद्भिन्नः सर्वथा न घटो यथा। |
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एवमिन्द्रियदृङ् नाहमिन्द्रियाणीति निश्चिनु। |
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संघातोऽपि तथा नाहमिति दृश्यविलक्षणम्। |
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देहेन्द्रियादयो भावा हानादिव्यापृतिक्षमाः। |
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अनापन्नविकारः सन्नयस्कान्तवदेव यः। |
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अजडात्मवदाभान्ति यत्सांनिध्याज्जडा अपि। |
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अगमन्मे मनोऽन्यत्र सांप्रतं च स्थिरीकृतम्। |
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स्वप्नजागरिते सुप्ति भावाभावौ धियां तथा। |
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घटावभासको दीपो घटादन्यो यथेष्यते। |
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पुत्रवित्तादयो भावा यस्य शेषतया प्रियाः। |
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परप्रेमास्पदतया मा न भूवमहं सदा। |
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यः साक्षिलक्षणो बोधस्त्वंपदार्थः स उच्यते। |
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देहेन्द्रियमनःप्राणाहंकृतिभ्यो विलक्षणः। |
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त्वमर्थमेवं निश्चित्य तदर्थं चिन्तयेत्पुनः। |
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निरस्ताशेषसंसारदोषोऽस्थूलादिलक्षणः। |
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निरस्तातिशयानन्दः सत्यः प्रज्ञानविग्रहः। |
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सर्वज्ञत्वं परेशत्वं तथा संपूर्णशक्तिता। |
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यज्ज्ञानात्सर्वविज्ञानं श्रुतिषु प्रतिपादितम्। |
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यदानन्त्यं प्रतिज्ञाय श्रुतिस्तत्सिद्धये जगौ। |
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विजिज्ञास्यतया यच्च वेदान्तेषु मुमुक्षुभिः। |
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जीवात्मना प्रवेशश्च नियन्तृत्वं च तान्प्रति। |
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कर्मणां फलदातृत्वं यस्यैव श्रूयते श्रुतौ। |
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तत्त्वंपदार्थौ निर्णीतौ वाक्यार्थश्चिन्त्यतेऽधुना। |
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संसर्गो वा विशिष्टो वा वाक्यार्थो नात्र संमतः। |
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प्रत्यग्बोधो य आभाति सोऽद्वयानन्दलक्षणः। |
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इत्थमन्योन्यतादात्म्यप्रतिपत्तिर्यदा भवेत्। |
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तदर्थस्य च पारोक्ष्यं यद्येवं किं ततः श्रृणु। |
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तत्त्वमस्यादिवाक्यं च तादात्म्यप्रतिपादने। |
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हित्वा द्वौ शबलौ वाच्यौ वाक्यं वाक्यार्थबोधने। |
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आलम्बनतया भाति योऽस्मत्प्रत्ययशब्दयोः। |
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मायोपाधिर्जगद्योनिः सर्वज्ञत्वादिलक्षणः। |
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प्रत्यक्परोक्षतैकस्य सद्वितीयत्वपूर्णता। |
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मानान्तरविरोधे तु मुख्यार्थस्यापरिग्रहे। |
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तत्त्वमस्यादिवाक्येषु लक्षणा भागलक्षणा। |
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अहं ब्रह्मेति वाक्यार्थबोधो यावद्दृढीभवेत्। |
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श्रुत्याचार्यप्रसादेन दृढो बोधो यदा भवेत्। |
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विशीर्णकार्यकरणो भूतसूक्ष्मैरनावृतः। |
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प्रारब्धकर्मवेगेण जीवन्मुक्तो यदा भवेत्। |
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निरस्तातिशयानन्दं वैष्णवं परमं पदम्। |