Devotional Hyms - Devi
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।।श्रीः।। |
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व्याप्तं हाटकविग्रहैर्जलचरैरारूढदेवव्रजैः |
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तस्मिन्नुज्ज्वलरत्नजालविलसत्कान्तिच्छटाभिः स्फुटं |
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जातीचम्पकपाटलादिसुमनःसौरभ्यसंभावितं |
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परिपतितपरागैः पाटलक्षोणिभागो |
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रम्यद्वारपुरप्रचारतमसां संहारकारिप्रभ |
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उद्यत्कान्तिकलापकल्पितनभःस्फूर्जद्वितानप्रभः |
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क्वापि प्रोद्भटपद्मरागकिरणव्रातेन संध्यायितं |
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उत्तुङ्गालयविस्फुरन्मरकतप्रोद्यत्प्रभामण्डला |
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मणिसदनसमुद्यत्कान्तिधारानुरक्ते |
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भक्त्या किं नु समर्पितानि बहुधा रत्नानि पाथोधिना |
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विदूरमुक्तवाहनैर्विनम्रमौलिमण्डलै |
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ध्वनन्मृदङ्गकाहलः प्रगीतकिंनरीगणः |
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प्रवेशनिर्गमाकुलैः स्वकृत्यरक्तमानसै |
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सुवर्णरत्नभूषितैर्विचित्रवस्त्रधारिभि |
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इन्द्रादींश्च दिगीश्वरान्सहपरीवारानथो सायुधा |
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गायन्तीः कलवीणयातिमधुरं हुंकारमातन्वती |
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कस्तूरिकाश्यामलकोमलाङ्गीं |
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विकीर्णचिकुरोत्करे विगलिताम्बराडम्बरे |
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प्रमत्तवारुणीरसैर्विघूर्णमानलोचनाः |
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स्फूर्जन्नव्ययवाङ्कुरोपलसिताभोगैः पुरः स्थापितै |
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आस्तीर्णारुणकम्बलासनयुतं पुष्पोपहारान्वितं |
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कनकरचिते पञ्चप्रेतासनेन विराजते |
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सर्वाङ्गस्थितिरम्यरूपरुचिरां प्रातः समभ्युत्थितां |
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उच्चैस्तोरणवर्तिवाद्यनिवहध्वाने समुज्जृम्भिते |
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पाद्यं ते परिकल्पयामि पदयोरर्घ्यं तथा हस्तयोः |
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मातः पश्य मुखाम्बुजं सुविमले दत्ते मया दर्पणे |
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निधेहि मणिपादुकोपरि पदाम्बुजं मज्जना |
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हेमरत्नवरणेन वेष्टितं |
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कनककलशजालस्फाटिकस्नानपीठा |
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पीनोत्तुङ्गपयोधराः परिलसत्संपूर्णचन्द्रानना |
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तत्र स्फाटिकपीठमेत्य शनकैरुत्तारितालंकृति |
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अभ्यङ्गं गिरिजे गृहाण मृदुना तैलेन संपादितं |
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कृतपरिकरबन्धास्तुङ्गपीनस्तनाढ्या |
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उद्गन्धैरगरुद्रवैः सुरभिणा कस्तूरिकावारिणा |
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प्रत्यङ्गं परिमार्जयामि शुचिना वस्त्रेण संप्रो़ञ्छनं |
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पीतं ते परिकल्पयामि निबिडं चण्डातकं चण्डिके |
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विलुलितचिकुरेण च्छादितांसप्रदेशे |
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लसत्कनककुट्टिमस्फुरदमन्दमुक्तावली |
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स्निग्धं कङ्कतिकामुखेन शनकैः संशोध्य केशोत्करं |
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विलम्बिवेणीभुजगोत्तमाङ्ग |
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त्वामाश्रयद्भिः कबरीतमिस्रै |
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स्वमध्यनद्धहाटकस्फुरन्मणिप्रभाकुलं |
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मीनाम्भोरुहखञ्जरीटसुषमाविस्तारविस्मारके |
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मध्यस्थारुणरत्नकान्तिरुचिरां मुक्तामुगोद्भासितां |
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उडुकृतपरिवेषस्पर्धया शीतभानो |
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मरकतवरपद्मरागहीरो |
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नानादेशसमुत्थितैर्मणिगणप्रोद्यत्प्रभामण्डल |
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अन्योन्यं प्लावयन्ती सततपरिचलत्कान्तिकल्लोलजालैः |
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करसरसिजनाले विस्फुरत्कान्तिजाले |
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व्यालम्बमानसितपट्टकगुच्छशोभि |
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विततनिजमयूखैर्निर्मितामिन्द्रनीलै |
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नीलपट्टमृदुगुच्छशोभिता |
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आलवालमिव पुष्पधन्वना |
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विजितहरमनोभूमत्तमातङ्गकुम्भ |
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व्यालम्बमानवरमौक्तिकगुच्छशोभि |
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विनिहतनवलाक्षापङ्कबालातपौघे |
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निबद्धशितिपट्टकप्रवरगुच्छसंशोभितां |
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विस्फुरत्सहजरागरञ्जिते |
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पदाम्बुजमुपासितुं परिगतेन शीतांशुना |
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आरक्तश्वेतपीतस्फुरदुरुकुसुमैश्िचत्रितां पट्टसूत्रै |
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गृहाण परमामृतं कनकपात्रसंस्थापितं |
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आलम्ब्य स्वसखीं करेण शनकैः सिंहासनादुत्थिता |
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चलन्त्यामम्बायां प्रचलति समस्ते परिजने |
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चञ्चद्वेत्रकराभिरङ्गविलसद्भूषाम्बराभिः पुरो |
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वेधाः पादतले पतययमसौ विष्णुर्नमत्यग्रतः |
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मन्दं चारणसुन्दरीभिरभितो यान्तीभिरुत्कण्ठया |
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अग्रे केचन पाश्र्वयोः कतिपये पृष्ठे परे प्रस्थिता |
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अग्रे गायति किंनरी कलपदं गन्धर्वकान्ताः शनै |
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कस्मैचित्सुचिरादुपासितमहामन्त्रौघसिद्धिं क्रमा |
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नम्रीभूय कृताञ्जलिप्रकटितप्रेमप्रसन्नानने |
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तव दहनसदृक्षैरीक्षणैरेव चक्षु |
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कल्पान्ते सरसैकदासमुदितानेकार्कतुल्यप्रभां |
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स्वस्थानस्थितदेवतागणवृते बिन्दौ मुदा स्थापितं |
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वदद्भिरभितो मुदा जय जयेति बृन्दारकैः |
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कर्पूरादिकवस्तुजातमखिलं सौवर्णभृङ्गारकं |
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त्वदमलवपुरुद्यत्कान्तिकल्लोलजालैः |
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प्रान्तस्फुरद्विमलमौक्तिकगुच्छजालं |
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उद्यत्तावकदेहकान्तिपटलीसिन्दूरपूरप्रभा |
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संतुष्टां परमामृतेन विलसत्कामेश्वराङ्कस्थितां |
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आधारशक्त्यादिकमाकलय्य |
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त्रिपुरासुधार्णवासन |
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ईशाने गणपं स्मरामि विचरद्विघ्नान्धकारच्छिदं |
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उड्यानजालंधरकामरूप |
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लोकेशः पृथिवीपतिर्निगदितो विष्णुर्जलानां प्रभु |
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तारानाथकलाप्रवेशनिगमव्याजाद्गतासुप्रथं |
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हृदि भावितदैवतं प्रयत्ना |
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हृदयमथ शिरः शिखाखिलाद्ये |
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त्रैलोक्यमोहनमिति प्रथिते तु चक्रे |
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सर्वाशापरिपूरके वसुदलद्वन्द्वेन विभ्राजिते |
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महेशि वसुभिर्दलैर्लसति सर्वसंक्षोभणे |
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लसद्युगदृशारके स्फुरति सर्वसौभाग्यदे |
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बहिर्दशारे सर्वार्थसाधके त्रिपुराश्रयाः। |
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अन्तःशोभिदशारकेऽतिललिते सर्वादिरक्षाकरे |
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सर्वरोगहरेऽष्टारे त्रिपुरासिद्धयान्विते। |
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चूताशोकविकासिकेतकरजः प्रोद्भासिनीलाम्बुज |
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त्रिकोण उदितप्रभे जगति सर्वसिद्धिप्रदे |
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सर्वानन्दमये समस्तजगतामाकाङ्क्षिते बैन्दवे |
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उल्लसत्कनककान्तिभासुरं |
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वैरमुद्धतमपास्य शंभुना |
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चूर्णीकृतं द्रागिव पद्मजेन |
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अगरुबहलधूपाजस्रसौरभ्यरम्यां |
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ईंकारोर्ध्वगबिन्दुराननमधोबिन्दुद्वयं च स्तनौ |
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धूपं तेऽगरुसंभवं भगवति प्रोल्लासिगन्धोद्धुरं |
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जातीकोरकतुल्यमोदनमिदं सौवर्णपात्रे स्थितं |
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शिम्बीसूरणशाकबिम्बबृहतीकूश्माण्डकोशातकी |
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निम्बूकार्द्रकचूतकन्दकदलीकौशातकीकर्कटी |
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सितयाञ्चितलड्डुकव्रजा |
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दुग्धमेतदनले सुसाधितं |
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अग्रे ते विनिवेद्य सर्वममितं नैवेद्यमङ्गीकृतं |
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वामेन स्वर्णपात्रीमनुपमपरमान्नेन पूर्णां दधाना |
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पङ्क्त्योपविष्टान्परितस्तु चक्रं |
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परमामृतमत्तसुन्दरी |
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दृश्यते तव मुखाम्बुजं शिवे |
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त्वन्मुखाम्बुजविलोकनोल्स |
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चक्षुः पश्यतु नेह किंचन परं घ्राणं न वा जिघ्रतु |
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यस्त्वां पश्यति पार्वति प्रतिदिनं ध्यानेन तेजोमयीं |
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गणाधिनाथं वटुकं च योगिनीः |
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वीणामुपान्ते खलु वादयन्त्यै |
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ताम्बूलं विनिवेदयामि विलसत्कर्पूरकस्तूरिका |
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काचिद्गायति किंनरी कलपदं वाद्यं दधानोर्वशी |
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ताम्बूलोद्भासिवक्त्रैस्त्वदमलवदनालोकनोल्लासिनेत्रै |
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अर्चाविधौ ज्ञानलवोऽपि दूरे |
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यथेप्सितमनोगतप्रकटितोपचारार्चितां |
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विज्ञप्तीरवधेहि मे सुमहता यत्नेन ते संनिधिं |
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क्वाहं मन्दमतिः क्व चेदमखिलैरेकान्तभक्तैः स्तुतं |
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नित्यार्चनमिदं चित्ते भाव्यमानं सदा मया। |