Comprehensive Texts
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अथ व्यवस्थिते त्वेवमस्य शक्तित्वमिष्यते। |
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प्राणात्मकं हकाराख्यं बीजं तेन तदुद्भवाः। |
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पवनाद्याः पृथिव्यन्ताः स्पर्शाद्यैश्च गुणैः सह। |
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ईकारस्य गुणाः प्रोक्ताः षडिति क्रमतो बुधैः। |
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प्रभेदेभ्यः समुत्पन्ना हकारस्य महात्मनः। |
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एकारादिविसर्गान्तं वर्णानां षट्कमुद्गतम्। |
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येभ्यः संजज्ञिरेंशेभ्यः स्वराः षोडश सर्वगाः। |
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गतो वो बीजतामेष प्राणिष्वेव व्यवस्थितः। |
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नादः प्राणश्च जीवश्च घोषश्चेत्यादि कथ्यते। |
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रेफो मायाबीजमिति त्रिधा समभिधीयते। |
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क्षान्तिः पुष्टिः स्मृतिः शान्तिरित्याद्यैः स्वार्थवाचकैः। |
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तामेनां कुण्डलीत्येते सन्तो हृदयगां विदुः। |
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आकृतिं स्वेन भावेन पिण्डितां बहुधा विदुः। |
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चराचरस्य जगतो बीजत्वान्मूलमेव तत्। |
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रेफान्वितेकाराकारयोगादुत्पत्तिरेतयोः। |
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हरत्वमस्य तेनैव सर्वात्मत्वं ममापि च। |
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स हंकारः पुमान्प्रोक्तः स इति प्रकृतिः स्मृता। |
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बिन्दुर्दक्षिणभागस्तु वामभागो विसर्गकः। |
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बिन्दुः पुरुष इत्युक्तो विसर्गः प्रकृतिर्मता। |
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पुंरूपं सा विदित्वा स्वं सोऽहंभावमुपागता। |
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सकारं च हकारं च लोपयित्वा प्रयोजयेत्। |
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ताराद्विभक्ताच्चरमांशतः स्यु |
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एवमेषा जगत्सूतिः सवितेत्यभिधीयते। |
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तद्वर्णभिन्ना गायत्री गायकत्राणनाद्भवेत्। |
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तदा स्वरेशः सूर्योऽयं कवर्गेशस्तु लोहितः। |
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तवर्गोत्थः सुरगुरुः पवर्गोत्थः शनैश्चरः। |
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यथा स्वरेभ्यो नान्ये स्युर्वर्णाः षड्वर्गभेदिताः। |
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इति संलीनसूर्यांशे वर्गषट्के तु षड्गुणाः। |
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सर्वव्याप्ता हि सा शक्तिः शश्वद्भास्कररूपिणी। |
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अस्यास्तु रजसा चैव तमसा च दिवानिशम्(?)। |
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अस्या विकाराद्वर्णेभ्यो जाता द्वादशराशयः। |
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ऋक्षराश्यादियुतया चक्रगत्या जगत्स्थितिः। |
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अन्तर्बहिर्विभागेन रचयेद्राशिमण्डलम्। |
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आद्यैर्मेषाह्वयो राशिरीकारान्तैः प्रजायते। |
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एदैतोः कर्कटो राशिरोदौतोः सिंहसंभवः। |
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षड्भ्यः कचटतेभ्यश्च पयाभ्यां च प्रजज्ञिरे। |
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चतुर्भिर्यादिभिः सार्धं स्यात्क्षकारस्तु मीनगः। |
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पादाधिका मकरयुक्िंसहवृश्चिकसंज्ञकाः। |
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त्रिपादोनौ मीनमेषौ संख्योक्ता राशिसंश्रिता। |
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वणिङ्मकरमेषाह्वकुलीरा रक्तरोचिषः। |
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स्युः कर्कटो वृश्चिकमीनराशी |
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अङ्गारावजवृश्चिकौ वृषतुले शुक्रस्य युक्कन्यके |
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लग्नो धनभ्रातृबन्धुपुत्रशत्रुकलत्रकाः |
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ततस्तदूर्ध्वभागस्थो भुवश्चक्रः समस्तथा। |
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तदूर्ध्वभागसंस्थः स्यात्स्वश्चक्रश्चापि तादृशः। |
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धनुस्तु देवलग्नत्वात्समासाल्लग्नमुच्यते। |
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सकुम्भयुग्मवणिजो मीनकर्कटवृश्चिकाः। |
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मूलाश्िवनीमघज्येष्ठारेवत्याश्लेषकास्तथा। |
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स्वातीशतभिषार्द्रा च श्रोणारोहिणिहस्तकाः। |
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चरस्थिरोभयात्मानश्चातुर्वर्ण्यगुणात्मकाः। |
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एभ्य एव तु राशिभ्यो नक्षत्राणां च संभवः। |
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आभ्यामश्वयुगेर्जाता भरणी कृत्तिका पुनः। |
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एदैतोर्मृगशीर्षार्द्रे तदन्ताभ्यां पुनर्वसू। |
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कतस्तिष्यस्तथाश्लेषा खगयोर्घङयोर्मघाः। |
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हस्तश्चित्रा च टठयोः स्वाती डादक्षरादभूत्। |
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ज्येष्ठा धकारान्मूलाख्यो नपफेभ्यो बतस्तथा। |
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श्रविष्ठा चापि यरयोस्तथा शतभिषग्लतः। |
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ताभ्याममोभ्यां लार्णोऽयं यदा वै सह वत्स्यते। |
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कषतो भुवनं मत्तः कषयोः संगमो भवेत्। |
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स पुनः षसहैः सार्धं परप्रोष्ठपदं गतः। |
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खदिरः कृष्णवंशौ च पिप्पलो नागरोहिणौ। |
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वकुलः शबरः सर्जो वञ्जुलः पनसार्ककौ। |
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आयुष्कामः स्वकं वृक्षं छेदयेन्न कदाचन। |
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तिथिनक्षत्रवारेषु स्वेषु मन्त्रजपो वरः। |
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अश्िवयमानलधाता शशिरुद्रादितिसुरेड्यसर्पाश्च |
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अश्वेभाजभुजङ्गसर्पसरमा मार्जारकाजा बिली |
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एभ्योऽमावास्यान्ता |
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तेन त्रिंशत्तिथयो |
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पक्षः पञ्चदशाहः |
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संज्ञासाम्ये सत्यपि |
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अग्न्यश्व्युमा सविघ्ना |
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राशिभ्यः सदिनेभ्यः स |
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सिंहव्याघ्रवराहाः |
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एवं संग्रहराशिक |
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वर्णाः पीतश्वेता |
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सचराचरस्य जगतो |
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यां ज्ञात्वा सकलमपास्य कर्मबन्धं |