Comprehensive Texts
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अथ यन्त्रविरचनाभि |
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त्रिगुणितसंज्ञे माया |
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कोणोल्लसितसुधाक्षर |
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पूर्णसुषुम्नारन्ध्रां |
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शीतांशुमण्डलस्थं |
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तद्यन्त्रयुगं विलिखे |
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विधिनानेन तु सम्य |
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साध्याख्यां शक्तिवह्नौ नरहरिमपि रन्ध्रत्रये च त्रिशक्तौ |
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त्रिगुणितविहिता विधयः |
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पाशाष्टाक्षरवीतशक्ति दहनप्रोल्लासिसाध्याह्वयं |
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चिन्तारत्नाश्रिताश्रित्रियुगमथ नृसिंहावृतान्तःस्थबीजं |
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द्वादशगुणिते शूले |
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चतसृषु दिक्षु निखन्या |
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अलदलनिशाकुशीतै |
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तत्र विशन्ति न चोरा |
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तद्वद्धटार्गलाख्यं |
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त्रिमधुरपूर्णे पात्रे |
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तामेवाथ प्रतिकृति |
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विधिनामुना त्रिरात्रा |
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यन्त्रं तदेव लाक्षा |
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तद्वद्विधाय कलशे |
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यन्त्रं तदेव विधिव |
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आलिख्य वीरपट्टे |
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मदजलविलिखितमेत |
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बहुनेति भाषितेन कि |
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गजमृगमदकाश्मीरै |
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राज्या पटुसंयुतया |
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हृल्लेखाग्निस्थसाध्याह्वयमपि बहिरांक्रोंवृतं वह्निगेह |
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शक्तिस्थं निजनाभिवह्निभवनद्वन्द्वोदरे मान्मथं |
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शक्त्यन्तःस्थितसाध्यनाम परितो बीजैश्चतुर्भिः समा |
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डान्तं शिखीलवयुतं दहनांशसाध्यं |
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मृत्काराङ्गुलिकात्तया सकृकलासान्तर्वसायुक्तया |
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वामाक्ष्याः प्रतिलिख्य नाम निशया वामोरुदेशे निशा |
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मायाहृदोरथान्ते |
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त्रिभुवनवशंकरीति च |
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मायाद्द्विठान्तिको मनु |
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सचतुर्दशभिर्दशभि |
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असकलशशिराजन्मौलिराबद्धपाशा |
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अयुतं प्रजपेज्जुहुया |
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तिलतण्डुलकैर्लोणै |
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नित्यं चादित्यगतां |
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वर्णादर्वाङ्मन्त्री |
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सतारराजमुख्यन्ते राजाधिमुखिवर्णकान्। |
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वीप्स्य देविमहादेविपदं देवादिदेवि च। |
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कुरु कुर्विति ठद्वन्द्वान्तिकं मन्त्रं समुद्धरेत्। |
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दशभिः सप्तभिश्चैव चतुर्भिः करणाक्षरैः। |
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ब्रह्माश्रीमन्त्रसंप्रोक्ता प्रतिपत्तिरमुष्य च। |
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मन्त्री सर्वजनस्थाने कुर्यात्साध्याह्वयान्मनोः। |
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देवीध्माष्टशतं प्रसूनवदथ त्रिस्वादुयुक्तं हुने |
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शक्तिं साध्यर्क्षवृक्षप्रतिकृति हृदि संलिख्य संस्थाप्य जीवं |
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अन्नं मय्यह्यन्नं |
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करणेन्द्रियरसधातु |
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दुग्धाब्धौ रूप्यवप्रावृतकनकमयद्द्वीपवर्ये सुराढ्ये |
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नत्यादिभगवत्यन्ते माहेश्वरिपदं वदेत्। |
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मायाविहितषडङ्गो |
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रुद्रताण्डवविलोकनलोलां |
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वैश्रवणः पक्वाशः |
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वित्तेशस्यान्तराले दशवटसमिधः सर्पिषाक्ता विविक्ता |
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मन्त्रैरेतैर्घृतयुत |
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भयाहारेन्दुयुक्सैव विदण्डाहस्पताक्षराः। |
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वर्णसाहस्रजाप्यश्च तावच्छतहुतो मतः। |
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रत्नस्वर्णांशुकादीन्निजकरकमलाद्दक्षिणादाकिरन्तं |
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वययोरन्तरास्त्रं मे देहि शुक्राक्षराद्द्विठः। |
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शुक्रास्ये शुक्लपुष्पैर्हुतभुजि गुणशः सप्तशोऽप्येकविंश |
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राजेरस्थोऽहिपो दण्डी वेदान्तेऽसौ विदण्डकः। |
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मुनिव्रातावीतं मुदितधियमम्भोदरुचिर |
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विकृतिसहस्रजपोऽयं |
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करचरणपार्श्वमूल |
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अयुतं प्रजपेच्च षट्सहस्रा |
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उत्तुङ्गादिः प्रचेता अपि दहनसमीरौ धराव्योमसंज्ञे |
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निजरिपुमचलाद्यैस्तैः ससंबाधवीतं |
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योनिर्वियत्सुनेत्रं |
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अयुतं जपेन्मनुमिमं |
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अश्वारूढा कराग्रे नवकनकमयीं नेत्रयष्टिं दधाना |
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विद्ययानुदिनहृद्ययानया |
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हवनक्रिया सपदि वश्यकरी |
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वाणी स्यात्ताररूपा शिरसि गिरिसुता शक्तिरूपा ललाटे |