Devotional Hyms - Vishnu
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।।श्रीः।। |
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।।श्रीः।। |
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।।श्रीः।। |
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।।श्रीः।। |
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अनाद्यन्तमाद्यं परं तत्त्वमर्थं |
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आहुर्यस्य स्वरूपं क्षणमुखमखिलं सूरयः कालमेतं |
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अनाद्यन्तमाद्यं परं तत्त्वमर्थं |
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अनाद्यन्तमाद्यं परं तत्त्वमर्थं |
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स्वशक्त्यादिशक्त्यन्तसिंहासनस्थं |
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अव्यान्निर्घातघोरो हरिभुजपवनामर्शनाध्मातमूर्ते |
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स्वशक्त्यादिशक्त्यन्तसिंहासनस्थं |
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स्वशक्त्यादिशक्त्यन्तसिंहासनस्थं |
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शिवेशानतत्पूरुषाघोरवामा |
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जीमूतश्यामभासा मुहुरपि भगवद्बाहुना मोहयन्ती |
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शिवेशानतत्पूरुषाघोरवामा |
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शिवेशानतत्पूरुषाघोरवामा |
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प्रवालप्रवाहप्रभाशोणमर्धं |
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कम्राकारा मुरारेः करकमलतलेनानुरागाद्गृहीता |
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प्रवालप्रवाहप्रभाशोणमर्धं |
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प्रवालप्रवाहप्रभाशोणमर्धं |
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स्वसेवासमायातदेवासुरेन्द्रा |
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यो विश्वप्राणभूतस्तनुरपि च हरेर्यानकेतुस्वरूपो |
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स्वसेवासमायातदेवासुरेन्द्रा |
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स्वसेवासमायातदेवासुरेन्द्रा |
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जगन्नाथ मन्नाथ गौरीसनाथ |
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विष्णोर्विश्वेश्वरस्य प्रवरशयनकृत्सर्वलोकैकधर्ता |
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जगन्नाथ मन्नाथ गौरीसनाथ |
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जगन्नाथ मन्नाथ गौरीसनाथ |
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विरूपाक्ष विश्वेश विश्वादिदेव |
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विरूपाक्ष विश्वेश विश्वादिदेव |
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वाग्भूगौर्यादिभेदैर्विदुरिह मुनयो यां यदीयैश्च पुंसां |
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विरूपाक्ष विश्वेश विश्वादिदेव |
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महादेव देवेश देवादिदेव |
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महादेव देवेश देवादिदेव |
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या सूते सत्त्वजालं सकलमपि सदा संनिधानेन पुंसो |
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महादेव देवेश देवादिदेव |
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त्वदन्यः शरण्यः प्रपन्नस्य नेति |
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त्वदन्यः शरण्यः प्रपन्नस्य नेति |
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त्वदन्यः शरण्यः प्रपन्नस्य नेति |
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येभ्योऽसूयद्भिरुञ्चैः सपदि पदमुरू त्यज्यते दैत्यवर्गै |
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अयं दानकालस्त्वहं दानपात्रं |
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अयं दानकालस्त्वहं दानपात्रं |
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अयं दानकालस्त्वहं दानपात्रं |
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रेखा लेखादिवन्द्याश्चरणतलगताश्चक्रमत्स्यादिरुपाः |
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पशुं वेत्सि चेन्मां तमेवाधिरूढः |
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पशुं वेत्सि चेन्मां तमेवाधिरूढः |
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पशुं वेत्सि चेन्मां तमेवाधिरूढः |
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यस्मादाक्त्रामतो द्यां गरूडमणिशिलाकेतुदण्डायमाना |
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न शक्नोमि कर्तुं परद्रोहलेशं |
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न शक्नोमि कर्तुं परद्रोहलेशं |
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न शक्नोमि कर्तुं परद्रोहलेशं |
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आक्त्रामद्भयां त्रिलोकीमसुरसुरपती तत्क्षणादेव नीतौ |
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येभ्यो वर्णश्चतुर्थश्चरमत उदभूदादिसर्गे प्रजानां |
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स्तुतिं ध्यानमर्चां यथावद्विधातुं |
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स्तुतिं ध्यानमर्चां यथावद्विधातुं |
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स्तुतिं ध्यानमर्चां यथावद्विधातुं |
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विष्णोः पादद्वयाग्रे विमलनखमणिभ्राजिता राजते या |
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शिरोदृष्टिहृद्रोगशूलप्रमेह |
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शिरोदृष्टिहृद्रोगशूलप्रमेह |
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शिरोदृष्टिहृद्रोगशूलप्रमेह |
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यस्यां दृष्ट्वामलायां प्रतिकृतिममराः संभवन्त्यानमन्तः |
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दरिद्रोऽस्म्यभद्रोऽस्मि भग्नोऽस्मि दूये |
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दरिद्रोऽस्म्यभद्रोऽस्मि भग्नोऽस्मि दूये |
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दरिद्रोऽस्म्यभद्रोऽस्मि भग्नोऽस्मि दूये |
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त्वदक्ष्णोः कटाक्षः पतेत्त्र्यक्ष यत्र |
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पादाम्भोजन्मसेवासमवनतसुरव्रातभास्वत्किरीट |
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त्वदक्ष्णोः कटाक्षः पतेत्त्र्यक्ष यत्र |
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त्वदक्ष्णोः कटाक्षः पतेत्त्र्यक्ष यत्र |
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भवान्यै भवायापि मात्रे च पित्रे |
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श्रीमत्यौ चारुवृत्ते करपरिमलनानन्दहृष्टे रमायाः |
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भवान्यै भवायापि मात्रे च पित्रे |
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भवान्यै भवायापि मात्रे च पित्रे |
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भवद्गौरवं मल्लघुत्वं विदित्वा |
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सम्यक्साह्यं विधातुं सममिव सततं जङ्घयोः खिन्नयोर्ये |
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भवद्गौरवं मल्लघुत्वं विदित्वा |
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भवद्गौरवं मल्लघुत्वं विदित्वा |
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यदा कर्णरन्ध्रं व्रजेत्कालवाह |
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देवो भीतिं विधातुः सपदि विदधतौ कैटभाख्यं मधुं चा |
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यदा कर्णरन्ध्रं व्रजेत्कालवाह |
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यदा कर्णरन्ध्रं व्रजेत्कालवाह |
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यदा दारुणाभाषणा भीषणा मे |
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पीतेन द्योतते यञ्चतुरपरिहितेनाम्बरेणात्युदारं |
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यदा दारुणाभाषणा भीषणा मे |
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यदा दारुणाभाषणा भीषणा मे |
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यदा दुर्निवारव्यथोऽहं शयानो |
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यस्या दाम्ना त्रिधाम्नो जघनकलितया भ्राजतेऽङ्गं यथाब्धे |
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यदा दुर्निवारव्यथोऽहं शयानो |
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यदा दुर्निवारव्यथोऽहं शयानो |
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यदा पुत्रमित्रादयो मत्सकाशे |
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उन्नम्रं कम्रमुञ्चैरूपचितमुदभूद्यत्र पत्रैर्विचित्रैः |
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यदा पुत्रमित्रादयो मत्सकाशे |
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यदा पुत्रमित्रादयो मत्सकाशे |
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यदा पश्यतां मामसौ वेत्ति नास्मा |
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यदा पश्यतां मामसौ वेत्ति नास्मा |
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पातालं यस्य नालं वलयमपि दिशां पत्रपङ्क्तीर्नगेन्द्रा |
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यदा पश्यतां मामसौ वेत्ति नास्मा |
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यदा यातनादेहसंदेहवाही |
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यदा यातनादेहसंदेहवाही |
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आदौ कल्पस्य यस्मात्प्रभति विततं विश्वमेतद्विकल्पैः |
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यदा यातनादेहसंदेहवाही |
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यदापारमच्छायमस्थानमद्भि |
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यदापारमच्छायमस्थानमद्भि |
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यदापारमच्छायमस्थानमद्भि |
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कान्त्यम्भःपूरपूर्णे लसदसितवलीभङ्गभास्वत्तरङ्गे |
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यदा रौरवादि स्मरन्नेव भीत्या |
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यदा रौरवादि स्मरन्नेव भीत्या |
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यदा रौरवादि स्मरन्नेव भीत्या |
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नाभीनालीकमूलादधिकपरिमलोन्मोहितानामलीनां |
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यदा श्वेतपत्रायतालङ्घ्यशक्तेः |
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यदा श्वेतपत्रायतालङ्घ्यशक्तेः |
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यदा श्वेतपत्रायतालङ्घ्यशक्तेः |
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संस्तीर्णं कौस्तुभांशुप्रसरकिसलयैर्मुग्धमुक्ताफलाढ्यं |
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इदानीमिदानीं मृति भवित्री |
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इदानीमिदानीं मृति भवित्री |
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इदानीमिदानीं मृति भवित्री |
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कान्तं वक्षो नितानतं विदधदिव गलं कालिमा कालशत्रो |
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संभूयाम्भोधिमध्यात्सपदि सहजया यः श्रिया संनिधत्ते |
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अमर्यादमेवाहमाबालवृद्धं |
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अमर्यादमेवाहमाबालवृद्धं |
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अमर्यादमेवाहमाबालवृद्धं |
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या वायावानुकूल्यात्सरति मणिरूचा भासमाना समाना |
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जराजन्मगर्भाधिवासादिदुःखा |
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जराजन्मगर्भाधिवासादिदुःखा |
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जराजन्मगर्भाधिवासादिदुःखा |
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हारस्योरूप्रभाभिः प्रतिनववनमालांशुभिः प्रांशुरूपैः |
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शिवायेति शब्दो नमःपूर्व एष |
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शिवायेति शब्दो नमःपूर्व एष |
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शिवायेति शब्दो नमःपूर्व एष |
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त्वमप्यम्ब मां पश्य शीतांशुमौलि |
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विश्वत्राणैंकदीक्षास्तदनुगुणगुणक्षत्रनिर्माणदक्षाः |
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त्वमप्यम्ब मां पश्य शीतांशुमौलि |
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त्वमप्यम्ब मां पश्य शीतांशुमौलि |
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अनुद्यल्ललाटाक्षिवह्निप्ररोहै |
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कण्ठाकल्पोद्गतैर्यः कनकमयलसत्कुण्डलोत्थैरूदारै |
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अनुद्यल्ललाटाक्षिवह्निप्ररोहै |
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अनुद्यल्ललाटाक्षिवह्निप्ररोहै |
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अकण्ठेकलङ्कादनङ्गेभुजङ्गा |
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पद्मानन्दप्रदाता परिलसदरुणश्रीपरीताग्रभागः |
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अकण्ठेकलङ्कादनङ्गेभुजङ्गा |
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अकण्ठेकलङ्कादनङ्गेभुजङ्गा |
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महादेव शंभो गिरीश त्रिशूलिं |
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नित्यं स्नेहातिरेकान्निजकमितुरलं विप्रयोगाक्षमा या |
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महादेव शंभो गिरीश त्रिशूलिं |
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महादेव शंभो गिरीश त्रिशूलिं |
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यतोऽजायतेदं प्रपञ्चं विचित्रं |
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ब्रह्मन्ब्रह्मण्यजिह्मां मतिमपि कुरुषे देव संभावये त्वां |
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यतोऽजायतेदं प्रपञ्चं विचित्रं |
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यतोऽजायतेदं प्रपञ्चं विचित्रं |
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किरीटे निशेशो ललाटे हुताशो |
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कर्णस्थस्वर्णकम्रोज्ज्वलमकरमहाकुण्डलप्रोतदीप्य |
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किरीटे निशेशो ललाटे हुताशो |
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किरीटे निशेशो ललाटे हुताशो |
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अनेन स्तवेनादरादम्बिकेशं |
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वक्त्राम्भोजे लसन्तं मुहुरधरमणिं पक्कबिम्बाभिरामं |
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अनेन स्तवेनादरादम्बिकेशं |
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अनेन स्तवेनादरादम्बिकेशं |
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भुजंगप्रियाकल्प शंभो मयैवं |
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भुजंगप्रियाकल्प शंभो मयैवं |
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दिक्कालौ वेदयन्तौ जगति मुहुरिमौ संचरन्तौ रवीन्दू |
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भुजंगप्रियाकल्प शंभो मयैवं |
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इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य |
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पातात्पातालपातात्पतगपतिगतेर्भ्रूयुगं भुग्नममध्यं |
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इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य |
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लक्ष्माकारालकालिस्फुरदलिकशशाङ्कार्धसंदर्शसील |
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रूक्षस्मारेक्षुचापच्युतशरनिकरक्षीणलक्ष्मीकटाक्ष |
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पीठीभूतालकान्तं कृतमकुटमहादेवलिङ्गप्रतिष्ठे |
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मालालीवालिधाम्नः कुवलयकलिता श्रीपतेः कुन्तलाली |
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सुप्तकाराः प्रसुप्ते भगवति विबुधैरप्यदृष्टस्वरूपा |
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यत्र प्रत्युप्तरत्नप्रवरपरिलसद्भूरिरोचिष्प्रतान |
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भ्रान्त्वा भ्रान्त्वा यदन्तस्त्रिभुवनगुरुरप्यब्दकोटीरनेकाः |
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मत्स्यः कूर्मो वराहो नरहरिणपतिर्वामनो जामदग्न्यः |
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यस्माद्वाचो निवृत्ताः सममपि मनसा लक्षणामीक्षमाणाः |
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आपादादा च शीर्षाद्वपुरिदमनघं वैष्णवं यः स्वचित्ते |
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मोदात्पादादिकेशस्तुतिमितिरचितां कीर्तयित्वा त्रिधाम्नः |