Preliminary Texts
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।।श्रीः।। |
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अज्ञानं कारणं साक्षी बोधस्तेषां विभासकः। |
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स एव संसरेत्कर्मवशाल्लोकद्वये सदा। |
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जागरस्वप्नयोरेव बोधाभासविडम्बना। |
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जागरेऽपि धियस्तूष्णींभावः शुद्धेन भास्यते। |
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वह्नितप्तजलं तापयुक्तं देहस्य तापकम्। |
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रूपादौ गुणदोषादिविकल्पा बुद्धिगाः क्रियाः। |
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रूपाच्च गुणदोषाभ्यां विविक्ता केवला चितिः। |
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क्षणे क्षणेऽन्यथाभूता धीविकल्पाश्चितिर्न तु। |
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मुक्ताभिरावृतं सूत्रं मुक्तयोर्मध्य ईक्ष्यते। |
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नष्टे पूर्वविकल्पे तु यावदन्यस्य नोदयः। |
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एकद्वित्रिक्षणेष्वेवं विकल्पस्य निरोधनम्। |
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सविकल्पकजीवोऽयं ब्रह्म तन्निर्विकल्पकम्। |
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सविकल्पकचिद्योऽहं ब्रह्मैकं निर्विकल्पकम्। |
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शक्यः सर्वनिरोधेन समाधिर्योगिनां प्रियः। |
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श्रद्धालुर्ब्रह्मतां स्वस्य चिन्तयेद्बुद्धिवृत्तिभिः। |
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तच्चिन्तनं तत्कथनमन्योन्यं तत्प्रबोधनम्। |
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देहात्मधीवद्ब्रह्मात्मधीदार्ढ्ये कृतकृत्यता। |