Preliminary Texts
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 ।।श्रीः।।  | 
              
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 न वर्णा न वर्णाश्रमाचारधर्मा  | 
              
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 न माता पिता वा न देवा न लोका   | 
              
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 न सांख्यं न शैवं न तत्पाञ्चरात्रं  | 
              
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 न चोर्ध्वं न चाधो न चान्तर्न बाह्यं  | 
              
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 न शुक्लं न कृष्णं न रक्तं न पीतं  | 
              
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 न शास्ता न शास्त्रं न शिष्यो न शिक्षा  | 
              
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 न जाग्रन्न मे स्वप्नको वा सुषुप्ति  | 
              
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 अपि व्यापकत्वाद्धि तत्त्वप्रयोगा  | 
              
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 न चैकं तदन्यद्द्वितीयं कुतः स्या  |