Devotional Hyms - Devi
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तनीयांसं पांसुं तव चरणपङ्केरुहभवं |
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अविद्यानामन्तस्तिमिरमिहिरद्वीपनगरी |
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त्वदन्यः पाणिभ्यामभयवरदो दैवतगण |
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हरिस्त्वामाराध्य प्रणतजनसौभाग्यजननीं |
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धनुः पौष्पं मौर्वी मधुकरमयी पञ्च विशिखा |
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क्वणत्काञ्चीदामा करिकलभकुम्भस्तननता |
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सुधासिन्धोर्मध्ये सुरविटपिवाटीपरिवृते |
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महीं मूलाधारे कमपि मणिपूरे हुतवहं |
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सुधाधारासारैश्चरणयुगलान्तर्विगलितैः |
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चतुर्भिः श्रीकण्ठैः शिवयुवतिभिः पञ्चभिरपि |
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त्वदीयं सौन्दर्यं तुहिनगिरिकन्ये तुलयितुं |
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नरं वर्षीयांसं नयनविरसं नर्मसु जडं |
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क्षितौ षट्पञ्चाशद्द्विसमधिकपञ्चाशदुदके |
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शरज्ज्योत्स्नाशुद्धां शशियुतजटाजूटमकुटां |
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कवीन्द्राणां चेतःकमलवनबालातपरुचिं |
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सवित्रीभिर्वाचां शशिमणिशिलाभङ्गरुचिभि |
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तनुच्छायाभिस्ते तरुणतरणिश्रीसरणिभि |
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मुखं बिन्दुं कृत्वा कुचयुगमधस्तस्य तदधो |
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किरन्तीमङ्गेभ्यः किरणनिकुरुम्बामृतरसं |
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तटिल्लेखातन्वीं तपनशशिवैश्वानरमयीं |
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भवानि त्वं दासे मयि वितर दृष्टिं सकरुणा |
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त्वया हृत्वा वामं वपुरपरितृप्तेन मनसा |
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जगत्सूते धाता हरिरवति रुद्रः क्षपयते |
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त्रयाणां देवानां त्रिगुणजनितानां तव शिवे |
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विरिञ्चिः पञ्चत्वं व्रजति हरिराप्नोति विरतिं |
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जपो जल्पः शिल्पं सकलमपि मुद्राविरचना |
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सुधामप्यास्वाद्य प्रतिभयजरामृत्युहरिणीं |
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किरीटं वैरिञ्चं परिहर पुरः कैटभभिदः |
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स्वदेहोद्भूताभिर्घृणिभिरणिमाद्याभिरभितो |
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चतुःषष्ट्या तन्त्रैः सकलमतिसन्धाय भुवनं |
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शिवः शक्तिः कामः क्षितिरथ रविः शीतकिरणः |
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स्मरं योनिं लक्ष्मीं त्रितयमिदमादौ तव मनो |
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शरीरं त्वं शंभोः शशिमिहिरवक्षोरुहयुगं |
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मनस्त्वं व्योम त्वं मरुदसि मरुत्सारथिरसि |
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तवाज्ञाचक्रस्थं तपनशशिकोटिद्युतिधरं |
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विशुद्धौ ते शुद्धस्फटिकविशदं व्योमजनकं |
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समुन्मीलत्संवित्कमलमकरन्दैकरसिकं |
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तव स्वाधिष्ठाने हुतवहमधिष्ठाय निरतं |
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तटित्त्वन्तं शक्त्या तिमिरपरिपन्थिस्फुरणया |
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तवाधारे मूले सह समयया लास्यपरया |
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गतैर्माणिक्यत्वं गगनमणिभिः सान्द्रघटितं |
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धुनोतु ध्वान्तं नस्तुलितदलितेन्दीवरवनं |
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तनोतु क्षेमं नस्तव वदनसौन्दर्यलहरी |
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अरालैः स्वाभाव्यादलिकलभसश्रीभिरलकैः |
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ललाटं लावण्यद्युतिविमलमाभाति तव य |
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भ्रुवौ भुग्ने किंचिद्भुवनभयभङ्गव्यसनिनि |
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अहः सूते सव्यं तव नयनमर्कात्मकतया |
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विशाला कल्याणी स्फुटरुचिरयोध्या कुवलयैः |
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कवीनां संदर्भस्तबकमकरन्दैकरसिकं |
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शिवे श्रृङ्गारार्द्रा तदितरजने कुत्सनपरा |
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गते कर्णाभ्यर्णं गरुत इव पक्ष्माणि दधती |
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विभक्तत्रैवर्ण्यं व्यतिकरितलीलाञ्जनतया |
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पवित्रीकर्तुं नः पशुपतिपराधीनहृदये |
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निमेषोन्मेषाभ्यां प्रलयमुदयं याति जगती |
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तवापर्णे कर्णेजपनयनपैशुन्यचकिता |
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दृशा द्राघीयस्या दरदलितनीलोत्पलरुचा |
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अरालं ते पालीयुगलमगराजन्यतनये |
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स्फुरद्गण्डाभोगप्रतिफलिताटङ्कयुगलं |
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सरस्वत्याः सूक्तीरमृतलहरीकौशलहरीः |
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असौ नासावंशस्तुहिनगिरिवंशध्वजपटि |
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प्रकृत्या रक्तायास्तव सुदति दन्तच्छदरुचेः |
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स्मितज्योत्स्नाजालं तव वदनचन्द्रस्य पिबतां |
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अविश्रान्तं पत्युर्गुणगणकथाम्रेडनजपा |
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रणे जित्वा दैत्यानपहृतशिरस्त्रैः कवचिभि |
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विपञ्च्या गायन्ती विविधमपदानं पशुपते |
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कराग्रेण स्पृष्टं तुहिनगिरिणा वत्सलतया |
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भुजाश्लेषान्नित्यं पुरदमयितुः कण्टकवती |
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गले रेखास्तिस्रो गतिगमकगीतैकनिपुणे |
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मृणालीमृद्वीनां तव भुजलतानां चतसृणां |
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नखानामुद्योतैर्नवनलिनरागं विहसतां |
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समं देवि स्कन्दद्विपवदनपीतं स्तनयुगं |
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अमू ते वक्षोजावमृतरसमाणिक्यकुतुपौ |
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वहत्यम्ब स्तम्बेरमदनुजकुम्भप्रकृतिभिः |
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तव स्तन्यं मन्ये धरणिधरकन्ये हृदयतः |
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हरक्रोधज्वालावलिभिरवलीढेन वपुषा |
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यदेतत्कालिन्दीतनुतरतरङ्गाकृति शिवे |
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स्थिरो गङ्गावर्तः स्तनमुकुलरोमावलिलता |
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निसर्गक्षीणस्य स्तनतटभरेण क्लमजुषो |
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कुचौ सद्यः स्विद्यत्तटघटितकूर्पासभिदुरौ |
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गुरुत्वं विस्तारं क्षितिधरपतिः पार्वति निजा |
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करीन्द्राणां शुण्डान्कनककदलीकाण्डपटली |
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पराजेतुं रुद्रं द्विगुणशरगर्भौ गिरिसुते |
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श्रुतीनां मूर्धानो दधति तव यौ शेखरतया |
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नमोवाकं ब्रूमो नयनरमणीयाय पदयो |
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मृषा कृत्वा गोत्रस्खलनमथ वैलक्ष्यनमितं |
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हिमानीहन्तव्यं हिमगिरिनिवासैकचतुरौ |
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पदं ते कीर्तीनां प्रपदमपदं देवि विपदां |
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नखैर्नाकस्त्रीणां करकमलसंकोचशशिभि |
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ददाने दीनेभ्यः श्रियमनिशमाशानुसदृशी |
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पदन्यासक्रीडापरिचयमिवारब्धुमनसः |
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गतास्ते मञ्चत्वं द्रुहिणहरिरुद्रेश्वरभृतः |
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अराला केशेषु प्रकृतिसरला मन्दहसिते |
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कलङ्कः कस्तूरी रजनिकरबिम्बं जलमयं |
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पुरारातेरन्तःपुरमसि ततस्त्वच्चरणयोः |
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कलत्रं वैधात्रं कतिकति भजन्ते न कवयः |
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गिरामाहुर्देवीं द्रुहिणगृहिणीमागमविदो |
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कदा काले मातः कथय कलितालक्तकरसं |
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सरस्वत्या लक्ष्म्या विधिहरिसपत्नो विहरते |
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प्रदीपज्वालाभिर्दिवसकरनीराजनविधिः |