Comprehensive Texts
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अथोभयात्मका वर्णाः स्युरग्नीषोमात्मभेदतः। |
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स्वराख्याः षोडश प्रोक्ताः स्पर्शाह्वाः पञ्चविंशतिः। |
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एषु स्वरा ह्रस्वदीर्घभेदेन द्विविधा मताः। |
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आद्यन्तस्वरषट्कस्य मध्यगं यच्चतुष्टयम्। |
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तच्चतुष्कं सुषुम्नास्थे कुर्यात्प्राणेऽयनस्थितिम्। |
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दक्षः सव्यस्थिते ह्रस्वदीर्घाः पञ्चोदयन्ति च। |
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बिन्दुसर्गौ तु यौ प्रोक्तौ तौ सूर्यशशिनौ क्रमात्। |
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स्पर्शाख्या अपि ये वर्णाः पञ्चपञ्चविभेदतः। |
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चतुर्विंशतितत्त्वस्थास्तस्माद्वर्णाः परे क्रमात्। |
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व्यापकाश्च द्विवर्गाः स्युस्तथा पञ्चविभेदतः। |
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तत्ित्रभेदसमुद्भूता अष्टत्रिंशत्कलाः स्मृताः। |
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षोडशद्वादशदशसंख्याः स्युः क्रमशः कलाः। |
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सर्वगाश्च समुत्पन्नाः पञ्चाशत्संख्यकाः कलाः। |
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तावत्यो मातृभिः सार्धं तेभ्यः स्यू रुद्रमूर्तयः। |
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याभिस्तु मन्त्रिणः सिद्धिं प्राप्नुयुर्वाञ्छितार्थदाम्। |
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शशिनी चन्द्रिका कान्तिर्ज्योत्स्ना श्रीः प्रीतिरङ्गना। |
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तपिनी तापिनी धूम्रा मरीची ज्वालिनी रुचिः। |
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कामाद्या वसुदाः सौराः षडान्ता द्वादशेरिताः। |
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सुश्रीः सुरूपा कपिला हव्यकव्यवहे अपि। |
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सृष्टि ऋद्धिः स्मृतिर्मेधा कान्तिर्लक्ष्मीर्द्युतिः स्थिरा। |
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अकारप्रभवा ब्रह्मजाताः स्युः सृष्टये कलाः। |
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वरदा ह्लादिनी प्रीतिर्दीर्घा चोकारजाः कलाः। |
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तीक्ष्णा रौद्री भया निद्रा तन्द्री क्षुत्क्रोधिनी क्रिया। |
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मकारप्रभवा रुद्रजाताः संहृतये कलाः। |
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निवृत्तिश्च प्रतिष्ठा च विद्या शान्तिस्तथैव च। |
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सूक्ष्मा सूक्ष्मामृता ज्ञानामृता चाप्यायिनी तथा। |
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नादजाः षोडश प्रोक्ता भुक्तिमुक्तिप्रदायकाः। |
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मधुसूदनसंज्ञश्च सप्तमः स्यात्ित्रविक्रमः। |
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पद्मनाभस्तथा दामोदराह्वो वासुदेवयुक्। |
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ततश्चक्री गदी शार्ङ्गी खङ्गी शङ्खी हली तथा। |
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मुकुन्दो नन्दजो नन्दी नरो नरकजिद्धरिः। |
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भूधरो विश्वमूर्तिश्च वैकुण्ठः पुरुषोत्तमः। |
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हंसो वराहो विमलो नृसिंहो मूर्तयो हलाम्। |
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मेधा च हर्षा श्रद्धाह्वा लज्जा लक्ष्मीः सरस्वती। |
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जया दुर्गा प्रभा सत्या चण्डा वाणी विलासिनी। |
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ऋद्धिः समृद्धिः शुद्धिश्च बुद्धिर्भक्तिर्मतिः क्षमा। |
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परा परायणा सूक्ष्मा संध्या प्रज्ञा प्रभा निशा। |
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एकपञ्चाशदुद्दिष्टा नमोऽन्ता वर्णपूर्विकाः। |
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श्रीकण्ठोऽनन्तसूक्ष्मौ च त्रिमूर्तिरमरेश्वरः। |
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झण्डीशो भौतिकः सद्योजातश्चानुग्रहेश्वरः। |
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ततः क्रोधीशचण्डीशपञ्चान्तकशिवोत्तमाः। |
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अजेशशर्वसोमेशास्तथा लाङ्गलिदारुकौ। |
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अत्रिर्मीनश्च मेषश्च लोहितश्च शिखी तथा। |
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भुजङ्गेशः पिनाकी च खङ्गीशश्च बकस्तथा। |
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पूर्णोदरी च विरजा तृतीया शाल्मली तथा। |
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सुदीर्घमुखिगोमुख्यौ नवमी दीर्घजिह्विका। |
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सज्वालोल्कश्रियाविद्यामुख्यः स्युः स्वरशक्तयः। |
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गीरी त्रैलोक्यविद्या च तथा मन्त्रार्णशक्तिका। |
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खेचरी मञ्जरी चैव रूपिणी वीरिणी तथा। |
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शङ्खिनी गर्जिनी कालरात्री कुर्दिन्य एव च। |
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रेवती माधवी चैव वारुणी वायवी तथा। |
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लक्ष्मीश्च व्यापिनी मायेत्याख्याता वर्णशक्तयः। |
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चन्दनकुचन्दनागरुकर्पूरोशीररोगजलघुसृणाः। |
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पिप्पलबिल्वगुहारुणतृणकलवङ्काह्वकुम्भिवन्दिन्यः। |
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प्लक्षाग्निमन्थसिह्मीकुशाह्वदर्भाश्च कृष्णदरपुष्पी। |
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शतमखलताद्विरेफो विष्णुक्रान्ती मुसल्यथाञ्जलिनी। |
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आदीनामिति कथिता वर्णानां क्रमवशादथौषधयः। |
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यथा भवन्ति देहान्तरमी पञ्चाशदक्षराः। |
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समीरिताः समीरेण सुषुम्नारन्ध्रनिर्गताः। |
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उच्चैरुन्मार्गगो वायुरुदात्तं कुरुते स्वरम्। |
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अर्धैकद्वित्रिसंख्याभिर्मात्राभिर्लिपयः क्रमात्। |
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अकारेकारयोर्योगादेकारो वर्ण इष्यते। |
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उकारयोगात्तस्यैव स्यादोकाराह्वयोऽक्षरः। |
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संध्यक्षराः स्युश्चत्वारो मन्त्राः सर्वार्थसाधकाः। |
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बिन्दुसर्गात्मनोर्व्यक्तिममसोरजपा वदेत्। |
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नश्वरः सर्ग एव स्यात्सोष्मा सप्राणकस्तु हः। |
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सर्गस्पर्शनमात्रेण कं खरस्पर्शनात्तु खम्। |
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ससर्गस्तालुगः सौष्म्यः श च वर्गं च यं तथा। |
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लृतवर्गलसानोष्ठादुपूपध्मानसज्ञकान्। |
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ह्रस्वाः पञ्च परे च संधिविकृताः पञ्चाथ बिन्द्वन्तिकाः |
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ऊदद्गादिलळाः कोर्णसौ चतुर्थार्णकावसौवारः। |
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मरुतः कपोलबिन्दुकपञ्चमवर्णाः शहौ तथा व्योम्नः। |
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स्तम्भनाद्यमथ पार्थिवैरपा |
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दशभिर्दशभिरमीभि |
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पूर्वोक्ताद्बिन्दुमात्रात्स्वयमथ रवतन्मात्रतामभ्युपैता |