Comprehensive Texts
अथाभिधास्यामि मनुं समासा |
प्रसादनत्वान्मनसो यथाव |
ऋषिरस्य वामदेवः |
शूलाही टङ्कघण्टासिसृणिकुलिशपाशाग्न्यभीतीर्दधानं |
ईशानादीन्मन्त्रवित्पञ्च मन्त्रा |
ईशानस्तत्पुरुषो |
मूर्धाननत्दृद्गुह्यक |
प्रतिपाद्य निजं शरीरमेवं |
अथ वा कुसुमैर्जपासमुत्थैः |
अष्टपत्रगुणवृत्तराशिभि |
वामा ज्येष्ठा रौद्री |
तारादिकं नतिमपि |
भूयोऽनन्तायेति च |
न्यासक्रमेण देहे |
सद्यो वेदाक्षमालाभयवरदकरः कुन्दमन्दारगौरो |
विद्युद्वर्णोऽथ वेदाभयवरदकुठारान्दधत्पूरुषाख्यः |
भूतानां शक्तित्वा |
अनन्तसूक्ष्मौ च शिवोत्तमश्च |
शूलाशनिशरचापो |
पाटलपीतसितारुण |
उमा चण्डेश्वरो नन्दी महाकालो गणेश्वरः। |
कनकविडूरजविद्रुम |
पुनराशेशास्तदनु च |
अमुना विधिना महेशपूजां |
वक्ष्यामि शैवागमसारमष्ट |
ईशोऽनुष्टुब्भूरी |
इन्द्रियतारसमेतं |
ज्वलितशिखिशिखेत्य |
सश्रीपशुहुंफ |
करदेहमुखन्यासं मन्त्रैः पूर्ववदाचरेत्। |
ताः स्युः पञ्च चतस्रोऽष्टौ त्रयोदश चतुर्द्वयम्। |
दिक्षु प्राग्याम्यवारीवसुपनिजभुवामैन्द्रवारर्किराज्ञां |
विन्यासः प्रतिमाकृतौ च नितरां सांनिध्यकृत्स्यादयं |
न्यस्यैवं पञ्चभिर्ब्रह्मभिरथ शिवमाराधयेदृग्भिराभि |
पञ्चाक्षरविहितविधिं |
मेषो विषो विसर्गी |
अम्या(?)क्षराण्यमूनि च |
प्रोक्तमृष्यादिकं पूर्वमङ्गवर्णैस्तु मन्त्रकैः। |
न्यसेत्तत्पुरषाघोरसद्योवामेशसंज्ञकान्। |
वक्त्रहृत्पादगुह्याख्यमूर्धस्वपि च नामभिः। |
बिभ्रद्दोर्भिः कुठारं मृगमभयवरौ सुप्रसन्नो महेशः |
अक्षरलक्षचतुष्कं |
तत्पुरुषाद्याः सर्वे |
आवृतिराद्या मूर्तिभि |
कथयामि मनोविधानमन्य |
हृन्मुखांसोरुयुग्मेषु षड्वर्णान्क्रमतो न्यसेत्। |
मूर्धास्यनेत्रघ्राणेषु दोःपत्संध्यग्रकेषु च। |
त्दृ(?)दाननपरश्वेणाभीत्याख्यवरदेषु च। |
ऊर्ध्वाधःक्रमतो न्यस्येद्गोलकान्यासमुत्तमम्। |
लालाटद्व्यंसजठरहृदयेषु क्रमान्न्यसेत्। |
नमोऽस्तु स्थाणुभूताय ज्योतिर्लिङ्गावृतात्मने। |
कुर्यादनेन मन्त्रेण निजदेहे समाहितः। |
पूर्वोक्त एव पीठे |
अन्या च वासवाद्यैः |
नमो विरिञ्चविष्ण्वीशभेदेन परमात्मने। |
नमश्चतुर्धा प्रोद्भूतभूतभूतात्मने भुवः। |
विश्वग्रासाय विलसत्कालकूटविषाशिने। |
नमो ललाटनयनप्रोल्लसत्कृष्णवर्त्मने। |
नमो देहार्धकान्ताय दग्धदक्षाध्वराय च। |
स्थूलाय मूलभूताय शूलदारितविद्विषे। |
विवाससे कपर्दान्तर्भ्रान्ताहिसरिदिन्दवे। |
भस्माभ्यक्ताय भक्तानां भुक्तिमुक्तिप्रदायिने। |
नमोऽन्धकान्तकरिपवे पुरद्विषे |
वियन्मरुद्धुतवहवार्वसुंधरा |
स्तुत्वेन्दुखण्डपरिमण्डितमौलिमेव |
संतर्प्य विप्रान्पुनरेवमेव |
अमुमेव मनुं लक्षं |
वन्दे हरं वरदशूलकपालहस्तं |
आवृतिरङ्गैराद्या |
आप्यायिनी शशियुताप्यरुणाग्निमाया |
वामाङ्कन्यस्तवामेतरकरकमलायास्तथा वामबाहु |
पञ्चार्णोक्ताङ्गाद्यः |
इति जपहुतपूजाध्यानकैरीशयाजी |