Comprehensive Texts
अथ वक्ष्यामि दुर्गाया मन्त्रान्साङ्गान्सदेवतान्। |
तारो मायामरेशोऽत्रिंपीठो बिन्दुसमन्वितः। |
दुर्गास्य देवता च्छन्दो गायत्रं नारदो मुनिः। |
शङ्खारिचापशरभिन्नकरां त्रिणेत्रां |
कृताभिषेकदीक्षस्तु वसुलक्षं जपेन्मनुम्। |
अष्टसाहस्रसंख्यैस्तु तिलैर्वा मधुराप्लुतैः। |
प्रभा माया जया सूक्ष्मा विशुद्धा नन्दिनी तथा। |
अर्च्या ह्रस्वत्रयक्लीबरहितैश्च स्वरैरिमाः। |
महासिंहाय चेत्युक्त्वा वर्मास्त्रनतयः क्रमात्। |
अङ्गैः स्यादावृतिः पूर्वा द्वितीया शक्तिभिः स्मृता। |
तदायुधैः पञ्चमी च दुर्गायजनमीदृशम्। |
श्रद्धा मेधा श्रुतिरपि शक्तयः स्वाक्षरादिकाः। |
क्रमादष्टायुधाः प्रोक्ता दौर्गा दुर्गतिहारिणः। |
मन्त्रीन्दिरावान्भवति दीर्घायुर्दुरिताञ्जयेत्। |
विधाय विधिनानेन कलशं चाभिषेचयेत्। |
अमुना विधिना कृताभिषेका |
अनयैव जपाभिषेकहोम |
उत्तिष्ठपदं प्रथमं |
शक्यमशक्यं वोक्त्वा |
आरण्यकोऽत्यनुष्टु |
षड्भिश्चतुर्भिरष्टभि |
पद्द्वयसंधिगुदान्ध्वा |
हेमप्रख्यामिन्दुखण्डात्तमौलिं |
अरिशङ्खकृपाणखेटबाणा |
चक्रदरखङ्गखेटक |
उद्यद्विकृतिभुजाढ्या |
व्याघ्रत्वक्परिधाना |
सर्पमयवलयनूपुर |
संयतचित्तो लक्षच |
पीठे पूर्वप्रोक्ते |
आर्या दुर्गा भद्रा |
अरिदरकृपाणखेटक |
इत्थं जपार्चनाहुत |
उद्दिश्य यद्यदेनं |
स्नात्वार्काभिमुखः स |
ध्यात्वा त्रिशूलहस्तां |
अयुतं तिलैर्वनोत्थै |
जुहुयाद्रोहिणसमिधा |
आर्कैः समित्सहस्रैः |
शुद्धैः सारैरिध्मै |
विशिखानां त्रिंशत्कं |
संपातिततैलेन च |
प्रतिसेनाया मध्ये |
अष्टोत्तरशतजप्तं |
कारस्करस्य पत्रै |
सेनां संस्तम्भयितुं |
विषतरुमयीं च शत्रोः |
असितचतुर्दश्यां त |
स्ववसारक्तोपेतै |
संस्थापितानिलां तां |
रविबिम्बगतामरुणां |
असिखेटकरार्कस्था |
विषतरुसमिदयुतहुता |
आनित्यसमिद्धोमा |
त्रिमधुरयुतैरनित्यक |
आज्यतिलराज्यनित्यक |
द्विजभूरुहं महान्तं |
शङ्खः सनन्दकोऽरिः |
तावद्धृतेन जुहुया |
संस्थाप्य समीकृत्य च |
यस्मिन्देशे विहिता |
पद्मोत्पलकुमुदहुतै |
अथ वारिदरगदाम्बुज |
साध्याख्याक्षरगर्भितं मनुममुं पत्रे लिखित्वा च त |
व्रीहीणां जुहुयान्नरोऽष्टशतकं संवत्सराद्व्रीहिमा |
छान्तं मरुत्तुरीयवर्णयुतं सवाद्यं |
ऋषिर्दीर्घतमाश्छन्दः ककुब्दुर्गा च देवता। |
वर्म चासुरमर्दिन्या युद्धपूर्वप्रिये तथा। |
नन्दिन्यन्ते रक्षयुगं महायोगेश्वरीति च। |
बिभ्राणा शूलबाणास्यरिसदरगदाचापपाशान्कराब्जै |
एवं विचिन्त्य पुनरक्षरलक्षमेनं |
दुर्गा च वरदा विन्ध्यवासिन्यसुरमर्दिनी। |
महायोगेश्वरी चाष्ट शक्तयः समुदीरिताः.। |
सशूलपाशा यष्टव्या दिक्क्रमादष्ट हेतयः। |
उद्धूर्णैः प्रहरणकैरुदीर्णवेगैः(?) |
अन्तराथ पुनरात्मरोगिणा |
अहिमूषिकवृश्चिकादिजं वा |
आधाय बाणे निशितेऽथ देवीं |
आत्मानमार्यां प्रतिपद्य शूल |
तिलसिद्धार्थैर्जुहुया |
त्रिमधुरयुक्तैश्च तिलै |
सर्पिषाष्टशतहोमतोऽमुना |
क्षुरिकाकृपाणनखरा |
गोमयविहिताङ्गुलिकां |
अस्पृष्टकुं गोमयमन्तरिक्षे |
पानीयान्धःपाणिमार्यां प्रसन्नां |
आर्कैर्मन्त्री त्रिमधुरयुतैरर्कसाहस्रमिध्मै |
कुर्यात्प्रयोगानपि दावदुर्गा |