Comprehensive Texts
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अथ रमाभुवनेशिमनोभवै |
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बीजैस्त्रिभिर्द्विरुक्तैः |
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नवकनकभासुरोर्वी |
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आबद्धरत्नमकुटां मणिकुण्डलोद्य |
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चामरमुकुरसमुद्गक |
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योगेश्वरीमिति विचिन्त्य जपेच्च मन्त्र |
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अङ्गैर्लक्ष्मीहरिगिरिसुताशर्वरत्यङ्गजातैः |
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लक्ष्मीगौरीमनसिशयबीजानि कृत्वा कलायां |
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य इमं भजते मनुं मनस्वी |
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सहृदयभगवत्यै दान्तरण्यै धरार्णाः |
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ऋषिरपि वराह उक्त |
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मुख्याम्भोजे निविष्टारुणचरणतला श्यामलाङ्गी मनोज्ञा |
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लक्षायता च सदशांशहुतावसाना |
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पीठे विष्णोः पूजयेत्पूर्वमन्त्रै |
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पुष्पैः प्रियङ्गोर्मधुरत्रयाक्तै |
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पिङ्गलां पृथुलशालिमञ्जरीं |
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भृगोस्तु वारे निजसाध्यभूभृ |
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षण्मासादनुभृगुवारमेष होमः |
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संक्षेपतो हृदयमन्त्रविधिर्धरायाः |
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अथ पुरुषार्थचतुष्टय |
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भक्तियुतानां त्वरया |
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वर्मद्धर्ये च तदन्त्यः |
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तारान्तेऽस्त्रादावपि |
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कूर्मादिभ्यां द्वाभ्यां |
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कालिकगलहृन्नाभिक |
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श्यामतनुमरुणपङ्कज |
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तनुमध्यलतां पृथुल |
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नृपफणिकेयूरां तां |
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शोणतराधरपल्लव |
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कुञ्चितकुन्तलविलस |
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सुरुचिरसिंहासनगां |
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दीक्षां प्राप्य गुरोरथ |
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अष्टहरिविधृतसिंहा |
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हुङ्काराख्या खेचरि |
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सश्रीबीजा लोके |
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सस्वर्णवेत्रयष्ट्यौ |
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अरुणैश्चन्दनकुसुमै |
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जपहुतपूजाभेदै |
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विद्याधर्यो यक्ष्यः |
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स्मरशरविह्वलिताङ्ग्यो |
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विस्पष्टजघनवक्षो |
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श्लथमानांशुकचिकुरा |
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वीक्षस्व देहि वाचं |
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इत्यादि वाणिनीभि |
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योनिं कुण्डस्यान्तः |
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इक्षुशकलैः समृद्ध्यै |
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जम्बूभिः स्वर्णाप्त्यै |
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अरुणोत्पलैश्च पुष्ट्यै |
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नीलोत्पलकैस्तुष्ट्यै |
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हुतसंख्यासाहस्री |
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अनुमन्त्रितैश्च वारिभि |
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तत्कर्णरन्ध्रजापा |
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आख्यां मध्ये सतारे मनुमथ शतसंयुक्तविंशत्पुटेषु |
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आख्यां मध्यगतानले लिखतु दिक्पङ्क्तिष्वथ स्युः सह्रूं (?) |
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कालीमाररमालीका |
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यमापाटटपामाय |
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वह्नेर्विण्णिम्बनिर्यासकविषमषिभिः सीसपट्टेंशुके वा |
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चक्रे चाष्टाष्टपदे |
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जप्तमधोमुखमेत |
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खण्डेष्वेकाशीतिषु मध्येन्दुगसाध्यं |
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दिग्दिक्संस्थामस्त्रपदाभिर्वषडन्तां |
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श्रीसामायायामासाश्री |
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लाक्षाभिः कुङ्कुमैर्वा विलिखतु धवले वांशुके स्वर्णपट्टे |
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चतुःषष्ट्यंशे वा क्रमविदथ लक्ष्मीमनुममुं |
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चक्रमनुग्रहसंज्ञं |
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हुंकारे साध्यसंज्ञां विलिखतु तदधः कर्णिकायां च शिष्टा |
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इति निगदितक्लृप्त्या पूजयेत्तोतलायां |
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स्मरदीर्घैधरकाग्न्यों |
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द्वाभ्यां वा चैकेन |
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इन्दुकलाकलितोज्ज्वलमौलि |
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दोर्धृतदाडिमसायकपाशा |
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स्मृत्वा नित्यां देवी |
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शाक्ते पीठे पूज्या |
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हृल्लेखा क्लेदनी नन्दा क्षोभणी मदनातुरा। |
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मेखला द्राविणी चैव भूयोऽन्या वेगवत्यपि। |
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अङ्गैः शक्तिभिराभि |
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दारिद्र्यरोगदुःखै |
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इतीरिता लोकहिताय वज्र |
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निद्रयोरन्तरा त्यक्लिन्ने मदाः स्युश्च वेशिरः। |
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रक्तारक्तांशुककुसुमविलेपादिका सेन्दुमौलिः |
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दीक्षितः प्रजपेल्लक्षं मनुमेनं हुनेत्ततः। |
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पीठं पूर्ववदभ्यर्च्य तत्रावाह्यापि पूजयेत्। |
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नित्या निरञ्जना क्लिन्ना क्लेदिनी मदनातुरा। |
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प्रजपेत्प्रमदां विचिन्त्य यां वा |
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नित्याभिः सदृशतरा न सन्ति लोके |