Comprehensive Texts
अथ वक्ष्ये संग्रहतो |
व्याहृत्यावीतशक्तिज्वलनपुरयुगद्वन्द्वसंध्युत्थशक्त्या |
पूर्वोक्तमानक्लृप्त्या |
द्वादशमध्यमवर्तुल |
ईशाग्निनिऋतिमरुतां |
मण्डलयुगयुगलं स्या |
रविकोणेषु दुरन्तां |
गायत्रीं प्रतिलोमतः प्रविलिखेदग्नेः कपोलं बहि |
|
आदावङ्गावरणमनु हृल्लेखिकाद्याश्चतस्रो |
कराली विकराली च उमा देवी सरस्वती। |
श्रद्धा मेधा मतिः कान्तिरार्या षोडश शक्तयः। |
रुद्रवीर्या प्रभानन्दा पोषणी ऋद्धिदा शुभा। |
विकृतिर्दण्डिमुण्डिन्यौ सेन्दुखण्डा शिखण्डिनी। |
इन्द्राणी चैव रुद्राणी शंकरार्धशरीरिणी। |
अम्बिका ह्लादिनी चैव द्वात्रिंशच्छक्तयो मताः। |
श्रद्धा स्वाहा स्वधाख्या च मायाभिख्या वसुंधरा। |
सुरूपा बहुरूपा च स्कन्दमाताच्युतप्रिया। |
प्रकृतिर्विकृतिः सृष्टिः स्थितिः संहृतिरेव च। |
देवमाता भगवती देवकी कमलासना। |
सलम्बोष्ठ्यूर्ध्वकेश्यौ च बहुशिश्ना वृकोदरी। |
पुनर्गगनवेगाख्या वेगा च पवनादिका। |
अनङ्गानङ्गमदना भूयश्चानङ्गमेखला। |
अक्षोभ्यासत्यवादिन्यौ वज्ररूपा शुचिव्रता। |
इष्ट्वा यथोक्तमिति तं कलशं निजं वा |
विधानमेतत्सकलार्थसिद्धि |
पाशाङ्कुशमध्यगया |
अष्टाशात्तार्गलाविर्हगलयवरगाच्पूर्वपाश्चात्त्यषट्कं |
पाशाङ्कुशावृतमनुप्रतिलोमगैश्च |
प्राक्प्रत्यगर्गले हल |
विलिखेच्च कर्णिकायां |
कोष्ठेषु षोडशस्वथ |
एकैकेषु दलेषु |
अनुलोमविलोमगतैः |
बिन्द्वन्तिका प्रतिष्ठा |
पाशश्रीशक्तिस्वर |
अथ गौरि रुद्रदयिते |
इति कृतदलसुविभूषित |
पूर्वप्रोक्तैः क्वाथै |
एवं संपूज्य देवीं कलशमनुशुभैर्गन्धपुष्पादिकैस्ता |
इति कृतकलशोऽयं सिच्यते येन पुंसा |
जपेच्चतुर्विंशतिलक्षमेवं |
पयोद्रुमाणां च समित्सहस्र |
गुरुमपि परिपूज्य काञ्चनाद्यै |
संक्षेपतो निगदितो विधिरर्चनायाः |
गजमृगमदकाश्मीरै |
राज्या पटुसंयुतया |
एभिर्विधानैर्भुवनेश्वरीं तां |
प्रसीद प्रपञ्चस्वरूपे प्रधाने |
स्तुतिर्वाक्यबद्धा पदात्मैव वाक्यं |
अजाधोक्षजत्रीक्षणाश्चापि रूपं |
नमस्ते समस्तेशि बिन्दुस्वरूपे |
नमः शब्दरूपे नमो व्योमरूपे |
नमः श्रोत्रचर्माक्षिजिह्वाख्यनासा |
रवित्वेन भूत्वान्तरात्मा दधासि |
चतुर्वक्त्रयुक्ता लसद्धंसवाहा |
विराजत्किरीटा लसच्चक्रशङ्खा |
जटाबद्धचन्द्राहिगङ्गा त्रिणेत्रा |
सचिन्ताक्षमाला सुधाकुम्भलेखा |
लसच्चक्रशङ्खा चलत्खङ्गभीमा |
पुरारातिदेहार्धभागो भवानी |
लसत्कौस्तुभोद्भासिते व्योमनीले |
अजाद्रीगुहाब्जाक्षपोत्रीन्द्रकाणां |
समुद्यद्दिवाकृत्सहस्रप्रभासा |
प्रभाकीर्त्तिकान्तीन्दिरारात्रिसंध्या |
हरे बिन्दुनादैः सशक्त्याख्यशान्तै |
नमस्ते नमस्ते समस्तस्वरूपे |
मनोवृत्तिरस्तु स्मृतिस्ते समस्ता |
हृल्लेखाजपविधिमर्चनाविशेषा |
इति हृल्लेखाविहितो |